जैन समाज ने मनाया संवत्सरी क्षमापना पर्व

Share:-

खमाऊ सा.. खमाऊ सा.. कर मिच्छामि दुक्कड़म क्षमा याचना की
जोधपुर। जैन समाज ने मंगलवार को पर्युषण पर्व के अंतिम दिन क्षमापना का संवत्सरी पर्व मनाया। इस दौरान जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगी और भगवान की भक्ति गई। वहीं धार्मिक स्थलों और स्थानकों में भी कई कार्यक्रमों का आयोजन हुआ।
जैन समाज की ओर से संवत्सरी महापर्व मंगलवार को श्रद्धापूर्वक मनाया गया। क्षमापना के संवत्सरी पर्व पर जैन समाज के लोगों ने एक दूसरे व अन्य लोगों से जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए मिच्छामि दुक्कड़म कहकर क्षमा मांगी। समाज के लोगों ने मौन उपवास, बिना जल के उपवास, आयंबिल आदि में से कोई एक तप किया। साथ ही जैन मंदिरों व चातुर्मास में विशेष धार्मिक अनुष्ठान किए गए। जैन धार्मिक स्थलों पर संतों-साध्वीवृंद के सान्निध्य में सभी श्रावक-श्राविकाओं ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हुए पापों एवं भूल के लिए क्षमायाचना की।
विशेष धार्मिक अनुष्ठान हुए
मुहताजी मंदिर में संत निपुण चंद्र सागर, मुनिराज अर्हम चंद्र सागर एवं साध्वी हेमेंद्रश्री के सान्निध्य में संवत्सरी महापर्व त्याग, तपस्या के साथ विभिन्न धर्म आराधनाओं में रत रहते हुए श्रद्धा एवं उल्लास के साथ मनाया गया। ट्रस्ट के प्रवक्ता दिलीप जैन एवं सचिव पवन मेहता ने बताया कि इस अवसर पर नरेंद्र एवं पुष्पा लुकड़ द्वारा संत निपुण चंद्र को बारसा सूत्र वहराया गया जिसमें समाहित 1250 गाथाओं का गुरुवर ने अपने मुखारविंद से वाचन करते हुए सभी को श्रवण करवाया। श्रद्धालु संपूर्ण दिवस धर्म आराधनाओं में रत रहे। सामूहिक पौषध करते हुए सांयकालीन प्रतिक्रमण किया गया जिसमें 84 लाख जीव योनि से क्षमा मांगते हुए आपस में हुए जाने अनजाने अपराधों, पापों, एवं भूलों का प्रायश्चित करते हुए एक दूसरे से क्षमा याचना की। ट्रस्ट के अध्यक्ष संजय मेहता एवं उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह मुहता ने बताया कि बुधवार को संत निपुण चंद्र सागर के जन्मोत्सव को कृतज्ञता दिवस के रूप में मनाते हुए धार्मिक गतिविधियों के साथ जीव दया करते हुए मनाया जाएगा। इसी दिन सुबह पुष्पा, पवन एवं रीटा मेहता द्वारा तपस्वियों के तप की अनुमोदना में सामूहिक पारणे के कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाएगा।
तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्य महाश्रमण की आज्ञानुवर्ती साध्वी कुंदन प्रभा आदि ठाणा-4 के सान्निध्य में ओसवाल कम्युनिटी सेंटर में संवत्सरी महापर्व मनाया गया। क्षमा के महापर्व के अवसर पर साध्वी चारित्रप्रभाजी ने श्रावक श्राविकाओं को प्रेक्षाध्यान के प्रयोग से कार्यक्रम का शुभारंभ किया। साध्वी ने कहा कि आत्म साक्षात्कार की बाते सभी करते है पर उस दिशा मे गमन नही कर पाते है। भगवान महावीर ने कहां है कि उ_िये णो पमाइये अर्थात् क्षण क्षण का उपयोग करें। आत्मा के शाश्वत लक्षण ज्ञान, दर्शन की व्याख्या करते हुये बताया हमें ज्ञान और दर्शन की आराधना करें। साध्वी किरणयशा ने उत्तराध्ययन का नौंवे अध्ययन की व्याख्या करते हुये बताया कि धर्म केवल बुढ़ापें मे करने का कार्य नही है। धर्म सतत् चलने साथ रहने वाला वाला आत्मा का गुण है। मोहकर्म कर्म बंधन का हेतु है उसे कर्मों का राजा कहा जाता है। साध्वी कुंदनप्रभा ने उपस्थित धर्माराधकों को संबोधित करते हुये बताया कि आज के संवत्सरी महापर्व उत्साह लेकर आया है। आज आमोद प्रमोद का दिन नही है, आत्मा को देखने का दिन है। स्वयं के विश्लेषण का दिन है। साध्वी विद्युत प्रभा ने कहा कि भगवान ने अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह अनेकान्त का सूत्र बताया और मानव जाति का उद्धार किया। सभा मंत्री महावीर चौपड़ा व जितेन्द्र गोगड ने भगवान महावरी के जन्म पर गीत की प्रस्तुति दी। श्रीमती सरिता बैद व मुस्कान पटावरी ने सुमधुर गीतिका ने गीतिका का संगान किया।
वहीं आचार्य महाश्रमण की शिष्या साध्वी रतिप्रभा के सानिध्य में जाटाबास स्थित तेरापंथ भवन में त्याग, उपवास, आराधना के साथ संवत्सरी महापर्व का आयोजन हुआ। साध्वी पावनयशा द्वारा जय महावीर भगवान् गीतिका के संगान से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। साध्वी रतिप्रभा ने कहा की मैत्रीभाव, उपशम्भाव, तपोभाव, आत्मशुद्धि का नाम है पर्युषण। भगवान महावीर के भवों के वर्णन पश्चात भगवान् का दीक्षा, साधनाकाल में किस प्रकार उपसर्ग को सहन कर आत्मलीन रहते और कर्मों की जंजीर तोड़ते है। संध्याकाल में मितेश जैन व प्रदीप चौपड़ा द्वारा सामूहिक प्रतिक्रमण करवाया गया जिसमें उपस्थित सभी भाई बहनों ने सरल मन से चौरासी लाख जीवयोनि से खमत खामना किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *