G20 का मंच भारत के लिए कितना फायदेमंद है?

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सवाल1 – भारत का फोकस किन मुद्दों पर है?
दुनिया में फिलहाल 3 बड़े मुद्दे हैं, जिन्हें भारत G20 समिट में उठा सकता है…

1) अनाज का संकट- यूक्रेन जंग की वजह से दुनिया में अनाज की कीमतें बढ़ी हैं। इसका ज्यादातर असर अफ्रीकी देशों पर पड़ा है। रूस का कहना है कि हमने ब्लैक सी कॉरिडोर के जरिए जो अनाज एक्सपोर्ट किया उसका 50% हिस्सा पश्चिमी देशों ने अपने पास रख लिया।

ब्लैक सी के जरिए यूक्रेन को हथियार भेजे। ऐसे में भारत ब्लैक सी अनाज डील फिर से लागू करवाने के लिए रूस को मनाने की कोशिश कर सकता है। हालांकि, पुतिन पहले ही साफ कर चुके हैं कि वो ग्रेन कॉरिडोर की फिर से शुरुआत नहीं करेंगे।

2) कर्ज – जुलाई में अमेरिका के सेंट्रल बैंक ने अपनी ब्याज दरों को बढ़ाकर 22 सालों के सबसे ऊंचे लेवल पर पहुंचा दिया है। इसकी वजह से डॉलर पहले से ज्यादा मजबूत हो गया।

ज्यादातर कर्ज का भुगतान डॉलर में होता है। इसकी वजह से दुनिया के कई गरीब देशों के लिए कर्ज की कीमत काफी बढ़ गई है। फिलहाल करीब 52 देश कर्ज के संकट से जूझ रहे हैं। भारत इस मुद्दे को उठाकर दुनिया के गरीब और विकासशील देशों की मदद कर सकता है।

3) अफ्रीकन यूनियन की सदस्यता- भारत यूरोपियन यूनियन की तरह ही अफ्रीकन यूनियन को इस संगठन का सदस्य बनवाने की पुरजोर कोशिश कर रहा था, जिसके बाद समिट के पहले दिन ही अफ्रीकन यूनियन को सदस्यता मिल गई। इस मुद्दे पर चीन ने भारत का साथ दिया। दरअसल, दोनों ही देश अफ्रीका में अपनी साख मजबूत करना चाहते हैं।

सवाल 2-क्या सच में दुनिया को G20 जैसे संगठन की जरूरत है?
G20 के आलोचकों का कहना है कि अब यह संगठन कमजोर हो रहा है। इसे इस बात से भी समझ सकते हैं कि संगठन के दो प्रमुख देश चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति पुतिन इस बैठक में शामिल होने भारत नहीं आ रहे हैं। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर स्टीफन एम वॉल्ट ने अपने एक लेख में G20 के संदर्भ में कहा है कि दुनिया चलाने का पश्चिमी देशों का नजरिया अब विकासशील देशों को पसंद नहीं आ रहा है।

इसकी वजह ये है कि G20 संगठन अभी तक कुछ ऐसा अचीव ही नहीं कर पाया जिसके लिए इसे बनाया गया था। उदाहरण के लिए 2021 में इटली में G20 देशों ने तय किया था कि वो ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने के लिए मिलकर काम करेंगे। हालांकि इस पर विकासशील और विकसित देशों में आपसी सहमति नहीं होने की वजह से कोयले के इस्तेमाल को कम करने पर कुछ काम नहीं हो पाया।

सवाल 3- G20 का मंच भारत के लिए कितना फायदेमंद है?
वरिष्ठ पत्रकार और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार सत्येंद्र रंजन के मुताबिक G20 काफी बड़ा मंच था। 2007-2008 की फाइनेंशियल क्राइसिस के समय से इस संगठन की बैठकों का आयोजन राष्ट्रध्यक्षों के लेवल पर किया जाने लगा। इससे पहले इसकी सारी बैठकें फाइनेंस मिनिस्टर और सेंट्रल बैंकों के लेवल पर होती थीं।

जब भारत जैसे देशों का महत्व बढ़ा तो इसे शिखर सम्मेलन के लेवल पर लाया गया। जो धनी देश थे उन्होंने ये महसूस किया कि वो दुनिया की इकोनॉमी को अकेले नहीं चला सकते हैं। अब G20 देश दुनिया की 83% इकोनॉमी को कंट्रोल करते हैं। ये देश आपस में बैठकर ढंग की आर्थिक पॉलिसी बनाएं, एक दूसरे से सहयोग बढ़ाएं इसी मकसद से इस संगठन को बनाया गया था।

अब हालात ये हैं कि दुनिया फिर से बंट गई है। दुनिया का एक खेमा अलग ढंग से सोचता है, दूसरा अलग ढंग से। ऐसे में G20 देशों में सहमति बनना मुश्किल हो गया है। इस साल भारत में अब तक हुई G20 की बैठकों में से किसी में आम सहमति नहीं बन पाई है।

यूक्रेन का मुद्दा ऐसा है, जिसको लेकर रूस और चीन दूसरे देशों से सहमत नहीं हो पाते हैं। G20 ऐसा मंच बन गया है जहां कोई फैसला नहीं हो पाता है। पिछले साल इंडोनेशिया में भी नहीं हो पाया था। जब आम सहमति ही नहीं बन रही है तो आज इस मंच की प्रासंगिकता पर सवाल उठ गया है। ऐसे समय में भारत इसकी अध्यक्षता कर रहा है। इस संगठन की बैठक के अंत में एक साझा घोषणा पत्र जारी होता है, उस पर सभी देशों की सहमति होना जरूरी है।

भारत के पास चुनौती है कि वो इसके लिए सभी देशों में आम सहमति बनवा दे। अगर ऐसा हो सका तो ये भारत की बड़ी सफलता मानी जाएगी। नहीं तो फिर ये समझा जाएगा की एक आयोजन हुआ जिसका कोई मतलब नहीं था।

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