सरकारी नौकरी के लिए महिला का विवाहित होना जरूरी नहीं: हाईकोर्ट

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अविवाहित होने के आधार पर सरकारी रोजगार से वंचित करना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन और महिला की गरिमा का भी हनन
जोधपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से सार्वजनिक रोजगार पाने के लिए महिला का विवाहित होना जरूरी की शर्त को गैरकानूनी और असंवैधानिक घोषित किया है। हाईकोर्ट ने कहा कि अविवाहित होने के आधार पर सरकारी रोजगार से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन औऱ महिला की गरिमा का भी हनन है।
जि़ला बालोतरा के गांव गुगड़ी, ग्राम पंचायत आकड़ली बकसिराम निवासी मधु चारण की ओर से अधिवक्ता यशपाल खि़लेरी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बताया कि महिला एवं बाल विकास विभाग, राजस्थान सरकार द्वारा आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, मिनी कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी सहायिका के नियुक्ति के लिए जारी विस्तृत गाइडलाइन नियमो में महिला का विवाहित होना आवश्यक की शर्त सम्मिलित कर रखी है, जिस कारण सम्पूर्ण राजस्थान के सभी संबंधित राजस्व ग्राम में स्थित आंगनवाड़ी केंद्रों पर अविवाहित लडक़ी/महिला आवेदन ही नहीं कर सकती है। याची की ओर से बताया गया कि बाल विकास परियोजना अधिकारी बालोतरा द्वारा गत 28 जून 2019 को तहसील के विभिन्न आंगनवाड़ी केंद्रों पर रिक्त आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, मिनी कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी सहायिका के पदों के लिए आवेदन पत्र मांगे गए। याची के राजस्व गांव गुगड़ी में पहले आंगनवाड़ी कार्यकर्ता पद पर याची की माता नियुक्त थी लेकिन उनके आसामयिक निधन होने से पद रिक्त हो गया। याची के पिता के केवल दो ही पुत्रियां है इस कारण माता के देहांत पश्चात दोनों पिता के पास ही रह रही है। याची ने नियुक्ति के लिए आवेदन पत्र पेश कर दिया लेकिन सम्बंधित अधिकारी ने नियमों में विवाहित होना आवश्यक की शर्त होने के कारण उसे मौखिक रूप से अपात्र बता दिया था। जिस पर याची ने स्पीड पोस्ट से आवेदन भी भेज दिया और उक्त नियम विवाहित होना आवश्यक को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की।
याचिका की प्रथम सुनवाई पर ही न्यायालय ने अंतरिम आदेश से याची की अभ्यर्थिता प्रोविजनल कंसीडर करने के आदेश दे दिए थे लेकिन नियुक्ति आज दिन तक किसी को भी नही दी। याचिका की सुनवाई के दौरान अधिवक्ता यशपाल खि़लेरी ने बताया कि भारत के संविधान में नागरिकों में भेदभाव करने पर स्पष्ट मनाही है और विधि के समक्ष समानता का मौलिक अधिकार प्रदत्त है। बावजूद इसके, राज्य सरकार द्वारा विवाहित महिला और अविवाहित महिला में भेदभाव किया जाकर एक नया मोर्चा खोल दिया गया है, जिसकी कल्पना या विचार तक भारत के संविधान के निर्माताओं ने भी नहीं किया था, जो अब राज्य सरकार द्वारा परिपत्र में विवादास्पद शर्त (महिला का विवाहित होना जरूरी) डालकर खोल दिया है। जिसे निरस्त करने की प्रार्थना की गई।
याची की ओर से ये भी बताया गया कि किसी भी नागरिक को उसके वैवाहिक स्थिति को आधार मानकर उसे सार्वजनिक रोजगार देने से इंकार नहीं किया जा सकता है। राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता द्वारा बताया गया कि याची द्वारा आवेदन पत्र अंतिम तिथि के पश्चात पेश किया है, इसलिए नियुक्ति के लिए पात्र नही है। साथ ही बताया गया कि महिला के विवाहित होना जरूरी के नियम के बारे में राज्य सरकार की मंशा यह है कि अविवाहित लडक़ी के नियुक्त कर देने के बाद उसकी शादी हो जाने पर वह अन्यत्र चली जाने से आंगनवाड़ी केंद्र का काम बाधित हो जाएगा। राज्य सरकार और याची को सुनने के बाद रिकॉर्ड का परिशीलन कर वरिष्ठ न्यायाधीश दिनेश मेहता ने राज्य सरकार के तर्कों से असहमत होते हुए रिपोर्टेबल निर्णय देते हुए आदेशित किया कि सार्वजनिक रोजगार के लिए अविवाहित उम्मीदवार होने मात्र से उसे अपात्र मानना अतार्किक, भेदभावपूर्ण और संविधान के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का स्पष्ठ उल्लंघन की श्रेणी में आता है। साथ ही उच्च न्यायालय के एकलपीठ न्यायाधीश ने अपने निर्णय में व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हुए कहा कि इस न्यायालय को यह गौर करने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है कि भेदभाव करने का एक नया मोर्चा, जिसकी कल्पना या विचार तक संविधान निर्माताओं ने भी नहीं की थीं, अब राज्य सरकार द्वारा अविवाहित होने की शर्त लगाकर खोल दिया है, जो अवैध है। साथ ही न्यायालय ने यह भी माना कि सरकारी नौकरी के लिए महिला को उसके अविवाहित होने के आधार पर वंचित करना उसको भारत के संविधान के अनुच्छेद 14/16 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है साथ ही उसकी गरिमा का भी हनन करना है। महिला के विवाहित होने या नही होने से उसको दी जा रही नौकरी के प्रयोजन पर कोई फर्क नहीं पडऩा है। कोर्ट ने याची को मैरिट अनुसार चार सप्ताह में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के पद पर नियुक्ति देने के आदेश दिए।

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