नाटक “रत्नगर्भा” का मंचन

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(कलाकारों ने की सौन्दर्य की व्याख्या)
जयपुर। मानव के आन्तरिक और बाहरी सौन्दर्य के प्रति संवेदनाओ को बडे ही मार्मिक ढंग से नाटक रत्नगर्भा में दिखाया गया। नाटक में कलाकारों के उत्कृष्ट अभिनय, खूबसूरत दृश्यबंध एवं प्रकाश डिजाइन ने स्त्री और पुरूष में व्याप्त मन एवं तन की सुन्दरता को रेखांकित
करने की कोशिश की गई। नाटक की कहानी एक ऐसी स्त्री पर केन्द्रित है जिसका चेहरा एक दुर्घटना में झुलस जाता है। विदेश में डाक्टरी की पढाई करने गये उसके पति से वह उस घटना का जिक्र इसलिए नही करती है कि उसकी पढाई बाधित ना हो जाए। लेकिन जब 3-4 साल बाद वो विदेश से वापस आता है तो अचानक उसका विकृत चेहरा देखकर वो सारी हदे पार कर जानवर बन जाता है। नाटक में पति-पत्नी के बीच सिर्फ शारीरिक सौन्दर्य के प्रति आकर्षण से उपजी मानसिकता और उससे उत्पन्न होने वाले परिणामों के बीच के द्वन्द को कलाकारों के अभिनय ने जीवन्त बना दिया।
यूनिवर्सल थियेटर एकेडमी द्वारा प्रस्तुत, डॉ. शंकर शेष द्वारा लिखित एवं रंगकर्मी केशव गुप्ता द्वारा निर्देशित नाटक का मंचन रवीन्द्र मंच के मिनि थियेटर में किया गया। नाटक मे नारी को भूमि की तरह माना है। जिस प्रकार धरती अपने अन्दर बहुत सारे रहस्य समेटे रहती है उसी प्रकार नारी भी अपने अन्दर सब कुछ समेट कर रखती है उसकी सहनशीलता के क्या परिणाम हो सकते है यही इस नाटक की मूल कहानी थी। जिस तरह धरती अच्छाई-बुराई को अपने अन्दर
समेटे रहती है। उसी तरह मानव के अन्दर भी राम-रावण दोनों का ही समावेश होता है और उसका दिमाग तय करता है कि वह राम के रूप में जीना चाहता है या रावण के रूप में। नाटक में वयक्ति के दोनों रूपों को चार किरदारों के माध्यम से दिखाया गया।
नाटक में इला-प्रियांक्षी केसवानी, सुनील-अभय शर्मा, माया-रिया सैनी, जगदीश-अर्जुन देव, आत्माराम एवं सिन्हा-धर्मेन्द्र भारती, गंगाराम-रिषभ सिंह आदि कलाकारों ने अभिनय किया।
नाट्य पार्श्व में प्रकाश व्यवस्था-केशव गुप्ता, रूपसज्जा एवं मंच प्रबन्धन-सीमा गुप्ता, वस्त्र
सज्जा-प्रियांक्षी केसवानी, मंच सज्जा-अमन कुमार, पार्श्व संगीत- विनय यादव, प्रचार-प्रसार
विपुल शर्मा, आलेख अद्यतन-राजेश आचार्य सहायक निर्देशन एवं उद्घोषण-अर्जुन देव का था।
नाटक की परिकल्पना एवं निर्देशन केशव गुप्ता ने की।

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