बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने क्षेत्रीय भाषाओं में CLAT आयोजित करने की मांग वाली दिल्ली हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका का समर्थन किया

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बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने दिल्ली हाईकोर्ट में बताया कि क्षेत्रीय भाषाओं में कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT) आयोजित करने से अधिक नागरिकों को कानून को करियर के रूप में अपनाने का अवसर मिलेगा। वकीलों के निकाय ने एक जनहित याचिका का समर्थन किया है जिस याचिका में CLAT-UG 2024 को न केवल अंग्रेजी में बल्कि भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी आयोजित करने की मांग की गई है। बीसीआई ने अपने हलफनामे में कहा, “बार काउंसिल ऑफ इंडिया अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं में CLAT परीक्षा आयोजित करने के याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए मुद्दे का समर्थन करती है क्योंकि इससे देश के अधिक नागरिकों को परीक्षा में शामिल होने और कानून को करियर के रूप में अपनाने का अवसर मिलेगा।” .

बीसीआई ने आगे कहा है कि 05 फरवरी को आयोजित ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन (एआईबीई) को 23 भाषाओं – अंग्रेजी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में आयोजित करने का निर्णय लिया गया था। हाल ही में कंसोर्टियम ऑफ नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज ने अपने हलफनामे में अदालत को बताया कि दिसंबर में होने वाली CLAT 2024 परीक्षा को क्षेत्रीय भाषाओं में आयोजित करना “लगभग असंभव” है। कंसोर्टियम ने हालांकि कहा था कि वह उचित विचार-विमर्श के बाद आने वाले महीनों में परीक्षा में अतिरिक्त भाषाओं की “अंतिम शुरूआत” के लिए एक सुविचारित रोडमैप तैयार करने में सक्षम होगा।

यह याचिका सुधांशु पाठक ने दायर की है, जो दिल्ली यूनिवर्सिटी के कानून के स्टूडेंट हैं। उनका प्रतिनिधित्व एडवोकेट आकाश वाजपेई और साक्षी राघव ने किया है। याचिका में कहा गया है कि CLAT परीक्षा उन छात्रों को “समान अवसर” प्रदान करने में विफल रहती है जिनकी शैक्षिक पृष्ठभूमि क्षेत्रीय भाषाओं में निहित है। यह प्रस्तुत किया गया है कि CLAT (UG) परीक्षा केवल अंग्रेजी भाषा में लेने की प्रथा में मनमानी और भेदभाव का तत्व है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 29(2) का उल्लंघन है।

याचिकाकर्ता ने आईडीआईए ट्रस्ट द्वारा किए गए एक हालिया सर्वेक्षण पर भी भरोसा जताया है, जिसमें बताया गया है कि सर्वेक्षण में शामिल 95% से अधिक छात्र उन स्कूलों से आए थे, जहां माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक दोनों स्तरों पर शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी था। यह भी प्रस्तुत किया गया है कि 2020 की नई शिक्षा नीति और बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के अनुसार स्कूलों और उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होना आवश्यक है।

केस टाइटल : सुधांशु पाठक बनाम कंसोर्टियम ऑफ नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज़ और अन्य

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