आपराधिक मुकदमे में कई माह जेल रहने के बाद बरी हुए दंपत्ति को क्यों ना दिलाया जाए मुआवजा

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जयपुर, 10 जून। राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर पूछा है कि आपराधिक मुकदमे में कई माह जेल में रहने के बाद बरी हुए दंपत्ति को क्यों ना पचास-पचास लाख रुपए मुआवजे के तौर पर दिलाए जाए। जस्टिस आशुतोष कुमार की एकलपीठ ने यह आदेश उत्तम चंद जैन व सुनिता जैन की ओर से दायर आपराधिक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।
याचिका में अधिवक्ता मोहित खंडेलवाल ने अदालत को बताया कि पारिवारिक रंजिश के चलते याचिकाकर्ताओं के खिलाफ उनके परिवारजनों ने बनीपार्क थाना पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। जिसमें आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ताओं ने पावर ऑफ अटॉर्नी में फर्जीवाड़ा किया। रिपोर्ट पर अनुसंधान अधिकारी ने उचित अनुसंधान किए बिना ही याचिकाकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया। जिसके चलते याचिकाकर्ताओं को कई माह तक जेल में रहना पडा। वहीं मामले में याचिकाकर्ता को कोर्ट ने दोषमुक्त भी कर दिया। एफएसएल जांच में भी सामने आया कि पावर ऑफ अटॉर्नी में हस्ताक्षर फर्जी नहीं थे। याचिका में कहा गया कि अदालत से बरी होने के बाद याचिकाकर्ताओं ने मुख्यमंत्री जनसुनवाई में जांच अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के लिए प्रार्थना पत्र दिया था। जिसके बाद अनुसंधान अधिकारी को दोषी मानते हुए उसके खिलाफ 17 सीसीए के तहत कार्रवाई की गई। याचिका में गुहार की गई है कि प्रकरण में जांच के लिए कमेटी गठित की जाए और उन्हें गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी पर कार्रवाई की जाए। इसके अलावा उनके मूलभूत अधिकारों के हनन के मुआवजे के तौर पर पचास-पचास लाख रुपए मुआवजे के तौर पर दिलाए जाए। जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने राज्य सरकार से जवाब तलब किया है।

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