2013 में पूर्वी राजस्थान के 8 जिलों में 44 सीटों पर मिली थी जीत

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मीणा-गुर्जर, एससी और ओबीसी मतदाताओं की बहुलता वाले पूर्वी राजस्थान में सवाई माधोपुर, धौलपुर, भरतपुर, दौसा, टोंक, जयपुर, अलवर, करोली जिले की 58 विधानसभा सीटें आती हैं। 2013 के चुनाव में इन 8 जिलों में भाजपा ने 58 में से 44 सीटें जीतकर राजस्थान में सत्ता हासिल की थी।

लेकिन 2018 के चुनाव में उसने जीती हुई सीटों में से 33 सीटें गंवा दी। उसे सिर्फ 11 सीटों पर ही जीत मिल सकी। जयपुर और भरतपुर संभाग में बुरी हार के कारण ही भाजपा सत्ता से बाहर हुई थी। जातिगत और सियासी समीकरणों के हिसाब से पूर्वी राजस्थान में कांग्रेस के अलावा बसपा का भी प्रभाव है।

इस बार भाजपा की रणनीति है कि इन 8 जिलों में फिर से 2013 का इतिहास दोहराया जाए। इसी वजह से फरवरी में जयपुर संभाग के दौसा में पीएम मोदी की सभा हुई और अब भरतपुर अमित शाह का दौरा हो रहा है।

भरतपुर में होगा दौसा- नागौर पर भी मंथन

भाजपा की रणनीति है कि विधानसभा चुनाव की तैयारी के साथ लोकसभा चुनाव की तैयारी भी साथ-साथ हो। लोकसभा चुनाव जीतने के लिए पहले विधानसभा चुनाव की फील्डिंग मजबूत करनी होगी। इसी लिहाज से अमित शाह भरतपुर संभाग के बूथ कार्यकर्ताओं को चुनाव जीतने का मंत्र देंगे।

इस बीच भरतपुर में दौसा और नागौर के चुनिंदा कार्यकर्ताओं को भी बुलाया गया है जिनसे शाह अलग से मिलेंगे। माना जा रहा है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व लोकसभा चुनाव के लिहाज से इस बार दौसा और नागौर के लिए अलग से रणनीति बना रहा है।

क्योंकि ये दोनों लोकसभा सीटें भाजपा ने कमजोर सीटों में चिन्हित कर रखी है। पिछली बार नागौर में भाजपा ने रालोपा से गठबंधन किया था, इस बार नागौर में खुद के दम पर जीत का प्लान बना रही है। वहीं दौसा में बाकी लोकसभा सीटों के मुकाबले जीत का अंतर कम रहने के कारण इस बार ज्यादा फोकस किया जा रहा है।

कमजोर सीटों को समय रहते मजबूत करने पर केंद्रीय नेताओं का फोकस

भाजपा की रणनीति है कि जिन जिलों में भाजपा की स्थिति कमजोर है, वहां पीएम मोदी सहित केंद्रीय नेताओं की सभाएं कराई जाए। आने वाले दिनों में श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, झुंझुनूं, सीकर, जयपुर, नागौर, जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा जैसे इलाकों में भी पीएम मोदी और अमित शाह की सभाएं कराने की प्लानिंग चल रही है।

प्रदेश में चुनाव तक मोदी सहित केंद्रीय नेताओं का जोर उन संभाग और जिलों पर होगा जहां भाजपा की स्थिति कमजोर है। बीते दिनों में बांसवाड़ा, भीलवाड़ा और दौसा में सभाएं करके मोदी इसकी शुरुआत कर चुके हैं।

पिछले चुनाव के नतीजों के अनुसार सीकर, भरतपुर, करौली, दौसा, सवाईमाधोपुर, जैसलमेर जिलों में भाजपा की एक भी सीट नहीं है। इन छह जिलों में कुल 29 सीटें हैं, जिनमें से भाजपा के पास एक भी सीट नहीं है।

इसके अलावा अलवर जिले की 11,जोधपुर की 10, बाड़मेर की 7 में से भाजपा के पास सिर्फ 2-2 सीटें हैं। कभी भाजपा के लिए मजबूत क्षेत्र माने जाने वाले जयपुर जिले में पिछले चुनाव में 19 में से भाजपा मात्र 6 सीटें ही हासिल कर पायी थी।

पायलट के प्रभाव क्षेत्र में फायदा उठाने की रणनीति

पूर्वी राजस्थान में हो रहे शाह के दौरे के पीछे पार्टी के जानकार नेताओं का कहना है कि पार्टी की नजर गहलोत-पायलट की लड़ाई से फायदा उठाने पर है। गुर्जर बहुल पूर्वी राजस्थान में सचिन पायलट का प्रभाव है और इस समय पायलट–गहलोत की खींचतान चरम पर है।

ऐसे में पायलट वाले प्रभाव क्षेत्र में भाजपा अपना फोकस बढ़ाकर सियासी लाभ लेने की कोशिश में है। दौसा, करौली, सवाईमाधोपुर समेत पूर्वी राजस्थान के इलाकों में इस समय पायलट के प्रति सहानुभूति की लहर है। इस सहानुभूति को भाजपा कांग्रेस से नाराज हो रहे पायलट समर्थकों को अपने पक्ष में करने लिए भुनाएगी।

शाह के दौरे का समय इस लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। राजस्थान में पीएम मोदी का मानगढ़, आसींद और दौसा का दौरा हो चाहे जेपी नड्‌डा और अमित शाह के अब तक हुए दौरे।

राजस्थान में हो रहे केंद्रीय नेताओं के कार्यक्रमों पर गौर करें तो यह साफ दिख रहा है कि पार्टी पूरी तरह से जातियों और समाजों को साधने पर फोकस कर रही है। भाजपा बड़े वोट बैंक वाली जातियों को अपने पक्ष में करने के लिए चुनावी रणनीति बनाने में जुटी हुई है।

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