आरोप पत्र दाखिल होने के बाद भी आपराधिक कार्यवाही रद्द करने पर कोई रोक नहीं : सुप्रीम कोर्ट

Share:-

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि आरोप पत्र दाखिल होने के बाद भी आपराधिक कार्यवाही रद्द करने पर कोई रोक नहीं है।

जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने आरोपी के खिलाफ घरेलू क्रूरता का मामला रद्द करते हुए यह माना कि आरोप पत्र दाखिल होने के बाद भी आरोपी के खिलाफ कोई नया आरोप नहीं पाया गया क्योंकि यह वही है, जो एफआईआर में दर्ज है।

इसमें उन उदाहरणों का हवाला दिया गया, जहां अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि हाईकोर्ट के लिए धारा 482 सीआरपीसी के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करने पर कोई रोक नहीं है, यहां तक ​​कि आरोप पत्र दाखिल होने के बाद भी आपराधिक मामला रद्द करने के लिए याचिका लंबित रहने के दौरान भी।

अदालत ने कहा,

“आरोप पत्र दाखिल होने के बाद भी आपराधिक कार्यवाही रद्द करने पर कोई रोक नहीं है।”

मामा शैलेश चंद्र बनाम उत्तराखंड राज्य मामले में न्यायालय ने कहा,

“भले ही आरोप पत्र दाखिल कर दिया गया हो, फिर भी न्यायालय यह जांच कर सकता है कि कथित अपराध प्रथम दृष्टया एफआईआर, आरोप पत्र और अन्य दस्तावेजों के आधार पर बनते हैं या नहीं।”

साथ ही न्यायालय ने आनंद कुमार मोहत्ता बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) के मामले का हवाला दिया, जहां यह माना गया कि यदि न्यायालय का मानना ​​है कि आरोप पत्र में अभियुक्त के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है, तो आरोप पत्र दाखिल करने के बाद भी प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए हाईकोर्ट द्वारा आपराधिक कार्यवाही में हस्तक्षेप किया जा सकता है।
न्यायालय ने आनंद कुमार मोहत्ता के मामले में टिप्पणी की,

“इस धारा के शब्दों में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग या न्याय की विफलता को रोकने की शक्ति के प्रयोग को केवल एफ.आई.आर. के चरण तक सीमित करता हो। यह विधि का स्थापित सिद्धांत है कि हाईकोर्ट धारा 482 सीआरपीसी के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग तब भी कर सकता है, जब डिस्चार्ज आवेदन ट्रायल कोर्ट में लंबित हो। वास्तव में यह कहना हास्यास्पद होगा कि किसी व्यक्ति के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही में एफआईआर के चरण में हस्तक्षेप किया जा सकता है, लेकिन तब नहीं जब यह आगे बढ़ चुका हो और आरोप आरोप-पत्र में बदल गए हों। इसके विपरीत यह कहा जा सकता है कि एफआईआर के कारण प्रक्रिया का दुरुपयोग तब और बढ़ जाता है, जब जांच के बाद एफआईआर ने आरोप-पत्र का रूप ले लिया हो। किसी भी न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए निस्संदेह शक्ति प्रदान की गई।”

केस टाइटल: कैलाशबेन महेंद्रभाई पटेल और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य, आपराधिक अपील नंबर 4003/2024

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *