राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया कि हाईकोर्ट के समक्ष CrPC की धारा 482 के तहत लगातार याचिकाएं दायर करने के खिलाफ कोई व्यापक नियम नहीं है। ऐसी याचिकाओं में यह देखा जाना चाहिए कि क्या तथ्यों और परिस्थितियों में कोई बदलाव हुआ है, जिसके कारण याचिका दायर करना आवश्यक हो गया।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ अतिरिक्त सीजेएम के आदेश के खिलाफ आपराधिक विविध याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ताओं के खिलाफ अपराधों का संज्ञान लिया गया।
इस आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ताओं द्वारा एडिशनल सेशन जज के समक्ष आपराधिक पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी लेकिन इसे खारिज कर दिया गया। इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ताओं ने वर्ष 2021 में भी आपराधिक विविध याचिका दायर कर न्यायालय का दरवाजा खटखटाया लेकिन आरोप तय करने के चरण में सभी कथनों को वापस ले लिया गया।
इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने वर्तमान याचिका दायर कर न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि उनके द्वारा दर्ज कराई गई FIR के आलोक में उनके खिलाफ झूठा मामला दर्ज किया गया, जिसमें पुलिस ने निगेटिव फाइनल रिपोर्ट पेश की। इसके खिलाफ विरोध याचिका दायर की गई, जिसमें याचिकाकर्ताओं के खिलाफ संज्ञान लिया गया। आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की गई, जिसे भी खारिज कर दिया गया।
इसके विपरीत सरकारी वकील ने तर्क दिया कि पुलिस ने निष्पक्ष और उचित तरीके से जांच नहीं की थी, इसलिए विरोध याचिका दायर की गई। सभी साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ताओं के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला पाया गया और इसलिए संज्ञान लिया गया। दलीलें सुनने के बाद न्यायालय ने रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री का अवलोकन किया और पाया कि ट्रायल कोर्ट के साथ-साथ रिविजनल कोर्ट द्वारा “विस्तृत तर्कपूर्ण और ठोस आदेश” पारित किया गया।
इसके अलावा यह कानून की स्थापित स्थिति है कि संज्ञान लेने के समय केवल प्रथम दृष्टया मामले की आवश्यकता थी न कि आरोपों की सत्यता की। इसलिए संज्ञान लेने में निचली अदालतों द्वारा कोई त्रुटि नहीं की गई।
इसके अलावा न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं द्वारा 2021 में न्यायालय के समक्ष दायर की गई पिछली याचिका को भी ध्यान में रखा, जिसे वापस ले लिया गया।
सुप्रीम कोर्ट के भीष्म लाल वर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य के मामले का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया,
“हाईकोर्ट के समक्ष धारा 482 CrPC के तहत लगातार याचिका दायर करने के खिलाफ कोई व्यापक नियम नहीं है। यह भी माना गया है कि यदि ऐसी याचिका दायर की जाती है तो यह देखा जाना चाहिए कि क्या तथ्यों और परिस्थितियों में कोई बदलाव हुआ, जिसके लिए ऐसी याचिका दायर करना आवश्यक था।”
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने कहा कि आज तक याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई आरोप तय नहीं किया गया। इसलिए मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। उसी आधार पर कोई भी क्रमिक याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता।
तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: मोहनलाल एवं अन्य बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य।