स्मृति शेष: ऐसे स्पष्टवादी थे करणी सेना के संस्थापक लोकेंद्र सिंह कालवी

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जो जात का नहीं, वह अपने बाप का नहीं
और जो बाप का नहीं, वह राष्ट्र का नही

अजमेर : श्री राजपूत करणी सेना के संस्थापक और राजस्थान में जनआंदोलन के अगुवा लोकेंद्र सिंह कालवी का मंगलवार को जयपुर में निधन हो गया। वे जन आंदोलन के लिए हमेशा तत्पर रहे। राजपूत करणी सेना और सामाजिक न्याय मंच की स्थापना भी उन्होंने जन आंदोलन की कड़ी में ही की थी। कालवी की भाजपा और कांग्रेस दोनों से निकटता रही, लेकिन वे हमेशा स्पष्टवादी रहे। कालवी पर जातिवाद तो बढ़ावा देने का आरोप लगा तो उन्होंने इस आरोप को अपने तरीके से स्वीकारा। कालवी ने सार्वजनिक मंचों से कहा कि जो अपनी जात का नही,ं वो अपने बाप का नहीं और जो बाप का नहीं वो राष्ट्र का नहीं।
उन्होंने साफ-साफ कहा कि मैं सबसे पहले अपनी जाति का हूं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि मैं राष्ट्र भक्त नहीं हंू। कालवी ने उदाहरण देते हुए कहा कि कारगिल युद्ध में 437 जवान शहीद हुए, इनमें से 248 राजस्थान के थे। इन शहीद हुए जवानों में 142 राजपूत समाज के थे। उनका सार्वजनिक सभाओं में कहना रहा है कि इन जवानों ने क्या राजपूत जाति के लिए अपना बलिदान दिया? नहीं, इन 142 राजपूत जवानों ने देश की खातिर अपना बलिदान दिया। इतिहास गवाह है कि मातृभूमि की रक्षा के लिए राजपूत समाज ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है।

जाति आधारित आरक्षण का किया था विरोध

आर्थिक आधार पर आरक्षण मिले इसकी भी कालवी ने पुरजोर मांग की तो समाज में सामाजिक कुरीतियों को मिटाने में भी कालवी का बहुत बड़ा योगदान रहा। उन्होंने भारत में जाति आधारित आरक्षण का पुरजोर विरोध करते हुए 2006 में श्री राजपूत करणी सेना की स्थापना की। उन्होंने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पहले कार्यकाल के दौरान सरकार की नीतियों और योजनाओं के खिलाफ कई प्रदर्शन किए। साथ ही भारत में जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था का विरोध कर नए विवाद को जन्म दिया था।

इतिहास से हुई छेड़छाड़ तो सडक़ों पर उतरे
उनकी बनाई श्री राजपूत करणी सेना ने राजपूत समाज पर आधारित फिल्मों, सीरियल का कई बार जमकर विरोध किया। कालवी के नेतृत्व में 2008 में फिल्म मेकर आशुतोष गोवारिकर की फिल्म जोधा अकबर की रिलीज का पूरे राजस्थान में विरोध हुआ। इसी तरह एकता कपूर के सीरियल जोधा अकबर का विरोध करते हुए जयपुर में लिटरेचर फेस्टिवल में काफी हंगामा किया गया। साल 2018 में करणी सेना ने फिल्म पद्मावती की रिलीज का भी विरोध किया था। तब कालवी ने खुले मंच से कहा था कि फिल्म में राजपूत वंश की गरिमा के खिलाफ दिखाया गया है। बाद में इस फिल्म का नाम

पद्मावत करना पड़ा था।

जुझारू नेता की छवि थी, सामाजिक मंच बनाया
लोकेंद्र सिंह कालवी ने 2003 में भाजपा नेता देवीसिंह भाटी के साथ मिलकर सामाजिक न्याय मंच बनाया था। सामाजिक न्याय मंच के जरिए सवर्ण आरक्षण की मांग के साथ राजनीतिक भागीदारी की मुहिम भी तेज की उपेक्षित को आरक्षण और आरक्षित को संरक्षण के नारे से पूरे प्रदेश में मुहिम चलाई थी। सामाजिक न्याय मंच ने साल 2003 के विधानसभा चुनाव में इसे मुद्दा बनाया था। 2003 के चुनाव में सामाजिक न्याय मंच को केवल एक सीट मिली थी, देवी सिंह भाटी को छोड़ मंच से कोई नेता नहीं जीत पाया था।

कांग्रेस-बसपा में रहे, फिर सियासत से बनाई दूरी
लोकेंद्र सिंह कालवी साल 2008 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हो गए थे। साल 2014 में लोकसभा चुनाव से पहले बसपा में चले गए थे, लेकिन जल्द ही उनका मोहभंग हो गया था। पिछले लंबे अरसे से राजनीति से उनका मोहभंग हो गया था, वे पूरी तरह सामाजिक कामों में व्यस्त हो गए थे। उनके पिता कल्याण सिंह कालवी राजस्थान में जनता दल के प्रमुख नेता थे। हालांकि लोकेंद्र सिंह कालवी स्वयं तो सांसद या विधायक नहीं बन सके, लेकिन उनके पिता कल्याण सिंह कालवी 1989 में बाड़मेर के सांसद और केंद्र में मंत्री रहे। वे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के करीबी लोगों में शुमार थे।

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