देश की युवाओं की जिंदगी मौजूदा वक्त में दिमाग की नसों में उलझती जा रही है। बड़ी संख्या में युवा ब्रेन स्ट्रोक की चपेट में है। इसके कुल मामलों में 25 फीसदी युवा हैं। जबकि विकसित देशों में यह आंकड़ा तीन से पांच फीसदी ही रहता है। कोरोना महामारी के बाद इनकी संख्या में इजाफा भी हुआ है। इसकी बड़ी वजह विशेषज्ञ तनाव को बता रहे हैं। इंडियन स्ट्रोक एसोसिएशन के अनुसार देश में एक साल में स्ट्रोक के 18 लाख से अधिक मामले सामने आए हैं।
यह आंकड़ा पिछले एक दशक में दोगुने तक हो गए हैं। इनमें 25 फीसदी संख्या औसत 35 वर्ष की है। विशेषज्ञ बताते हैं कि कोरोना महामारी के बाद युवाओं में तनाव काफी बढ़ गया है। इसके अलावा पश्चिमी देशों की तरह जीवनशैली, खानपान अपनाने की ललक ने युवाओं के बीच नशे को बढ़ाया है जो ब्रेन स्ट्रोक की संभावनाओं को बढ़ा रहा है। मौजूदा समय में देश में हर चार सैकड़ों में एक व्यक्ति ब्रेन स्ट्रोक का शिकार हो रहा है और हर चार मिनट में एक व्यक्ति ब्रेन स्ट्रोक के कारण दम तोड़ देता है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली में न्यूरोलॉजी विभाग प्रमुख प्रोफेसर डॉ. एम.वी. पद्मा श्रीवास्तव के मुताबिक, ब्रेन स्ट्रोक के बढ़ते मामले चिंताजनक हैं। यदि सभी नियमित बीपी की जांच करवाएं तो काफी हद तक इस समस्या से बच सकते हैं। ब्रेन स्ट्रोक आने के बाद मरीज को गोल्डन आवर में अस्पताल पहुंचा दिया जाता है तो मरीज की जान बचाई जा सकती है। साथ ही धमनी में क्लॉटिंग को हटाकर विकलांगता को भी रोका जा सकता है। पिछले 10 साल में चिकित्सा के क्षेत्र में काफी सुधार हुए हैं। इसकी रोकथाम के लिए कई दवाइयां व उपकरण आ गए हैं। साथ ही देशभर के जिले में इसकी रोकथाम के लिए जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है। स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षित भी किया जा रहा है।
कैसे करें पहचान
– अचानक संतुलन बिगड़ जाए
– आंखें के सामने अंधेरा छा जाए
– चेहरा टेढ़ा हो जाए
– हाथ में जान न रहे
– बोल न पाए
– समय का पता न चले
इन्हें ज्यादा खतरा
– परिवार में किसी को हुआ हो
– बीपी के मरीज
– मधुमेह के रोगी
– खराब लाइफ स्टाइल
– तनाव
– धूम्रपान व नशा
– स्लीप डिसऑर्डर
देश में अभी दर्ज नहीं हो पाते मामले
एम्स की मानें तो देश में स्ट्रोक के काफी मामले दर्ज नहीं हो पाते। एम्स में गंभीर हालत में पहुंचने वाले मरीज के परिजन बताते हैं कि वह बाबा या झांड फूक वालों से उपचार करवा रहे थे। उनका कहना है कि यह ऊपर की हवा के कारण ऐसा हो रहा था। ऐसे मरीजों का उपचार करना मुश्किल हो जाता है।
20 फीसदी मामलों में नहीं मिलता कोई संकेत
एम्स के अनुसार ब्रेन स्ट्रोक के कुल 20 फीसदी मामलों में देखा गया है कि मरीज में स्ट्रोक होने के कोई कारण नहीं थे, वह न तो शराब पीता था और न ही उसमें बीपी की कोई समस्या थी। स्ट्रोक आने के बाद जब गंभीरता से जांच की जाती है तो कारण पता चलता है। डॉक्टरों की मानें तो ऐसा देखा गया है कि स्ट्रोक के कुल 10 फीसदी मामलों में ही बी-फास्ट के लक्षण दिखे हैं, जबकि बाकि में ऐसे कोई लक्षण नहीं दिखे। हालांकि स्ट्रोक होने के कारण आने के कारण जरूर मिले।
कोविड के बाद बढ़ी समस्या
प्राइमस अस्पताल में वरिष्ठ न्यूरो सर्जन डॉ. रवींद्र श्रीवास्तव ने बताया कि कोरोना महामारी के बाद स्ट्रोक के मामले बढ़ गए हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना के वायरस के कारण धमनियां में क्लॉटिंग की जो दिमाग तक पहुंच गई, जिस कारण स्ट्रोक के मामले बढ़े। सामान्य मरीजों के मुकाबले कोरोना के मरीजों में यह दोगुना तक देखा गया है। जिन्हें कोरोना नहीं हुआ उनमें यह आंकड़ा एक लाख में 38.2 मरीज का रहा। वहीं जिन्हें कोरोना हुआ उनका आंकड़ा एक लाख में 82.6 मरीजों का रहा है। उन्होंने कहा कि कोरोना के बाद लोगों में नौकरी जाने, पैसों की समस्या, नशा करने, परिवार के टूटने, लिविंग रिलेशनशिप, जंक फूड का चलन सहित अन्य के कारण तनाव बढ़ा है, जो ब्रेन स्ट्रोक की संभावनाओं को बढ़ा रहे हैं।