केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि लॉकर का जॉइंट नॉमिनी अन्य नॉमिनी से अलगह होकर लॉकर को संचालित करने का अधिकार रखता है। इस प्रकार, प्रशासक-सामान्य अधिनियम, 1963 की धारा 29 के तहत अन्य नॉमिनी की मृत्यु की स्थिति में नॉमिनी के किसी भी लेटर की आवश्यकता नहीं होगी। जस्टिस शाजी पी. शैली ने भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 218 का अवलोकन करते हुए, जो यह निर्धारित करती है कि ‘किसको एडमिनिस्ट्रेशन दिया जा सकता है, जहां मृतक हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध, सिख, जैन या छूट प्राप्त व्यक्ति है’, कहा:
“मेरी राय में भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 218 उस तरीके को निर्धारित करती है, जिसमें संपत्ति का एडमिनिस्ट्रेशन कानून की अदालत द्वारा दिया जाना है, ऐसे मामलों में जहां व्यक्ति की निर्वसीयत मृत्यु हो गई है। यह एक ऐसा मामला है, जहां पहला याचिकाकर्ता है, जो बैंक से किराए पर लिए गए लॉकर के संयुक्त मालिक हैं, उनको बैंक द्वारा लॉकर का संचालन करने से रोका गया। इसे अन्यथा रखने के लिए मेरे विचार से अधिनियम, 1925 की धारा 218 लागू नहीं होगा, क्योंकि याचिकाकर्ता संयुक्त मालिक है, जो बैंक के अनुसार लॉकर के अन्य जॉइंट नॉमिनी से स्वतंत्र होने पर भी उसके संचालन के अधिकार के रूप में हकदार है।
एडमिनिस्ट्रेशन-सामान्य अधिनियम, 1963 की धारा 29 के तहत प्रशासन के किसी भी पत्र को सुरक्षित करने की भी कोई आवश्यकता नहीं है। प्रतिवादी बैंक के लिए यह भी कोई मामला नहीं है कि मृतक शशिधरन पिल्लई द्वारा छोड़ी गई संपत्ति के मामले में किसी के द्वारा कोई मुकदमा दायर किया गया।पहले याचिकाकर्ता और उसके पति ने संयुक्त रूप से एसबीआई में लॉकर किराए पर लिया, जहां उन्होंने अपना कीमती सामान रखा। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि उन्होंने पहली याचिकाकर्ता के पति की मृत्यु की सूचना बैंक को समय पर दी और वह मृतक के एकमात्र कानूनी उत्तराधिकारी है। हालांकि, जब पहली याचिकाकर्ता ने अपने पति की मृत्यु के बाद बैंक से लॉकर संचालित करने की अनुमति का अनुरोध किया तो उसे मना कर दिया गया। याचिकाकर्ता को बाद में बैंक के शाखा प्रबंधक द्वारा 4 जनवरी, 2023 के पत्र से सूचित किया गया कि उसे इसे संचालित करने के लिए प्रोबेट या प्रशासन पत्र के रूप में कानूनी प्रतिनिधित्व के आवश्यक प्रमाण को सुरक्षित करना होगा।
पहली याचिकाकर्ता का मामला यह है कि चूंकि जॉइंट लॉकर नॉमिनी को अपने पति के जीवनकाल के दौरान लॉकर को स्वतंत्र रूप से संचालित करने की अनुमति दी गई और दोनों पक्षों के बीच कोई अनुबंध निष्पादित नहीं किया गया कि लॉकर को केवल जॉइंट रूप से संचालित किया जा सकता है, यहां जो रुख बैंक द्वारा अपनाया गया वह अवैध और मनमाना है। याचिकाकर्ताओं की ओर से एडवोकेट प्रवीण के. जॉय द्वारा यह बताया गया कि शोभा गोपालकृष्णन बनाम केरल राज्य (2019) में केरल हाईकोर्ट ने पहले लॉकर के जॉइंट नॉमिनी में से एक को दूसरे का मृत्यु सर्टिफिकेट जमा करने पर लॉकर संचालित करने की अनुमति दी। उन्होंने इस प्रकार तर्क दिया कि प्रतिवादी बैंक द्वारा अपनाया गया रुख कानून के स्थापित सिद्धांतों और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी नीतियों और दिशानिर्देशों के खिलाफ है।