आदिवासी हिंदू धर्म से अलग, जनगणना में धर्म अलग कोड रखा जाए : घोघराअनुदान मांगों पर चर्चा के दौरान सदन में उठा मामला

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जयपुर,13 मार्च(ब्यूरो): राज्य विधानसभा में सोमवार को जनजाति विकास विभाग की अनुदान मांगों पर चर्चा के दौरान आदिवासियों के हिंदू धर्म से अलग होने का मामला उठा। कांग्रेस के गणेश घोघरा ने यह मामला उठाते हुए कहा कि आदिवासी शुरू से ही प्रकृति पूजक रहे हैं और वे हिंदू धर्म से अलग है। आजादी के बाद पहली जनगणना के दौरान 1951 में आदिवासियों के लिए धर्म के लिए अलग से कॉलम संख्या 9 थी जिसे बाद में हटा दिया गया। घोघरा ने जातिगत जनगणना करवाए जाने औैर उसे धर्म को कॉलम हिंदू धर्म से अलग करवाने की मांग की।
घोघरा ने कहा कि 1955 में सुप्रीम कोर्ट औैर हाईकोर्ट ने भी आदिवासियों को हिंदू नहीं माना है। कोर्ट ने न तो ब्राह्मण माना, न क्षत्रिय, आदिवासी समाज कभी गुलाम नहीं रहा। उन्होंने कहा कि आदिवासियों की भाषा और सभ्यता अलग है। होली पर टीएसपी क्षेत्र में हमारी परम्परागत महुड़ी शराब का प्रचलन है, लेकिन पुलिसकर्मी इसे अवैध शराब मानकर आदिवासियों के खिलाफ केस दर्ज करती है। महुआ का जूस उबालते है और उसके रस का सेवन करते है। इसमें कोई अल्कोहल या स्प्रिट नहीं होती, लेकिन पुलिस इसे शराब मानती है। उन्होंने पूरे क्षेत्र से अंग्रेजी शराब की दुकानें बंद कर महुआ को देसी शराब घोषित किए जाने की मांग भी की।

नक्सलवाद और माओवाद के बीज : मेघवाल
भाजपा के कैलाश मेघवाल ने प्रदेश में आदिवासियों के साथ हो रहे अत्याचार के साथ ही उन्हें अधिकार देने की वकालत की। मेघवाल ने कहा कि दक्षिण राजस्थान से भीलस्तान की मांग उठ रही है। यह मांग राजस्थान को खंडित करने वाली है, जिसकी पहुंच राजस्थान विधानसभा तक भी हो चुकी है।
मेघवाल ने कहा कि हमें इसे लेकर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि ऐसी मांग क्यों उठी और हरा-भरा व रंग रंगीला राजस्थान का एक हिस्सा हमसे अलग क्यों होना चाहता है। ऐसे में इस पर गंभीरता से विचार करते हुए ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जिससे कि आदिवासी वर्गों में संतोष की स्थिति पैदा हो। बंगाल में नक्सलवाद से कितना खून खराबा हुआ, यह किसी से छिपा नहीं है। दक्षिण राजस्थान में भी नक्सलवाद के बीज पहुंच चुके हैं। आदिवासियों में असंतोष बढ़ गया है, जिससे वहां माओवाद भी बढ़ गया है।
मेघवाल ने कहा कि दक्षिण राजस्थान विशेष शेड्यूल एरिया कहा जाता है और 8 जिलों में आदिवासी रहते हैं। वहां सर्वे करवा लिया जाए उस सर्वे में साफ हो जाएगा कि सरकार आदिवासियों को स्थाई रोजगार नहीं दे पाई है। आदिवासियों में 12 जातियां हैं और इनकी उपजातियां 41 हैं। जिनके रहन-सहन, उठन-बैठने, सांस्कृतिक और सामाजिक पैटर्न अलग-अलग हैं। ऐसे में एक पैटर्न अपनाकर इनका फायदा नहीं हो सकता। इन 8 जिलों में यह देखा जाए कि कितने आईएएस, आईएफएस, आईपीएस और राज्य सेवा में अधिकारी हैं। उससे हर किसी को आदिवासियों की स्थिति का पता चल जाएगा।

बिहार की तर्ज पर जातिगत जनगणना की मांग
मेघवाल ने राजस्थान में बिहार की तर्ज पर जातिगत जनगणना की मांग करते हुए कहा कि इन सभी 12 जातियों की जनगणना की जाए और उस जनगणना के आधार पर इसकी संख्या कितनी है। आदिवासी को अगर मुख्यधारा में नहीं लाया गया तो हिंसक वातावरण बनेगा। अगर आदिवासी भूखा होगा तो वह हिंसा की ओर जाएगा और देश के विकास में बाधा बनेगा। आदिवासी की स्थिति यह है कि वहां बच्चों को बेचा जा रहा है, क्या अपने कलेजे के टुकड़े को कोई बेचता है, लेकिन ऐसा हो रहा है।

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