कर्नाटक हाईकोर्ट : शादी के झूठे वादे पर बलात्कार के मामले में रिश्ते की लंबाई महत्वपूर्ण कारक

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कर्नाटक हाईकोर्ट ने उस आरोपी के खिलाफ लगाए गए बलात्कार के आरोपों को खारिज कर दिया, जिस पर पीड़िता द्वारा की गई शिकायत पर मामला दर्ज किया गया। पीड़िता ने अपनी शिकायत में कहा कि आरोपी ने पांच साल से अधिक समय तक उसके साथ रिश्ते में रहने के कारण उससे शादी करने से इनकार कर दिया। जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने आंशिक रूप से मल्लिकार्जुन देसाई गौदर द्वारा दायर याचिका की अनुमति दी और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376, 376 (2) (एन), 354, 406 और 504 के तहत लगाए गए आरोप खारिज कर दिए। अदालत ने उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 323 और 506 और सपठित धारा 34 के तहत आरोपों को बरकरार रखा।

पीड़िता का आरोप है कि दोनों में जान-पहचान हो गई और यह रिश्ते में और रिश्ता यौन संबंध में बदल गया। यह आरोप लगाया गया कि शादी के बहाने याचिकाकर्ता ने उसके साथ यौन संबंध बनाए और बाद में शादी के वादे से मुकर गया। इसलिए यह तर्क दिया गया कि शिकायतकर्ता की सहमति शादी के झूठे वादे पर प्रलोभन देकर प्राप्त की गई। इसके बाद आरोपी के खिलाफ अपराध दर्ज होने पर पुलिस ने जांच के बाद आरोप पत्र दाखिल किया। याचिकाकर्ता ने कहा कि वह और शिकायतकर्ता प्यार में थे, शादी करना चाहते थे, लेकिन जातिगत समीकरणों के न मिलने के कारण उसके बहुत प्रयासों के बावजूद शादी नहीं हो सकी। इसके बाद शिकायतकर्ता पलट गया और अपने रिश्ते को शादी के झूठे बहाने से जोड़ देता है और आरोप लगाता है कि उसने उस बहाने से यौन संबंध बनाए। इसलिए यह बलात्कार के बराबर है।

यह कहा गया, “यह कल्पना के किसी भी खंड द्वारा बलात्कार का कृत्य नहीं होगा, क्योंकि यह सहमति थी।” याचिका का शिकायतकर्ता ने यह दावा करते हुए विरोध किया कि यदि झूठे वादे या झूठे बहाने से सहमति प्राप्त की जाती है कि आरोपी शिकायतकर्ता से शादी करेगा तो यह बलात्कार की श्रेणी में आएगा, क्योंकि सहमति स्वतंत्र इच्छा से नहीं दी जाती। पीठ ने शिकायत पर गौर करते हुए कहा कि शिकायत इंगित करती है कि याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता 5 साल से प्यार में थे और वे 12 साल से एक-दूसरे को जानते थे।

फिर यह देखा गया, “शिकायत में वर्णित कथन और सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिए गए बयान को अगर साथ-साथ पढ़ा जाए तो जो स्पष्ट रूप से सामने आएगा, वह यह है कि याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता प्यार में थे और सालों से कई मौकों पर संभोग किया। बयान में स्पष्ट रूप से दर्ज है कि याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता से शादी करने के लिए बहुत प्रयास किए। याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता दोनों के परिवार एक दूसरे को जानते थे। शादी की बातें हुईं, लेकिन नाकाम रहीं।’ आगे पीठ ने कहा, “हालांकि शिकायत और बयान बताता है कि याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता के साथ शुरू में जबरन यौन संबंध बनाए, लेकिन उक्त बल को पांच साल तक जारी नहीं देखा जा सकता। कथन स्पष्ट रूप से इंगित करेगा कि संबंध सहमति से था।

इसमें कहा गया, “यदि यह सहमति से है तो यह आरोप नहीं लगाया जा सकता कि यह आईपीसी की धारा 375 के तहत बलात्कार का घटक बन जाएगा। इसके लिए यह आईपीसी की धारा 376 के तहत दंडनीय होगा।” शिकायतकर्ता की इस दलील को खारिज करते हुए कि याचिकाकर्ता की सहमति शादी के झूठे वादे पर ली गई और इसलिए इसे बलात्कार करार दिया जाना चाहिए, पीठ ने कहा, “प्रतिवेदन अस्वीकार्य है, क्योंकि महिला की सहमति शादी के वादे पर है। शादी हमेशा एक पहेली होती है।” रामचंद्र बनाम केरल राज्य के मामले में केरल हाईकोर्ट के फैसले का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा, “पांच साल तक, यह नहीं कहा जा सकता कि इस तरह के मामलों में पूरी तरह से उसकी इच्छा के विरुद्ध महिला की सहमति ली गई।”

तदनुसार कोर्ट ने कहा, “इस न्यायालय को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करना होगा, जिससे याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 के तहत बलात्कार के अपराध के लिए दर्ज अपराध को खत्म किया जा सके, ऐसा न करने पर यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग बन जाएगा।” केस टाइटल: मल्लिकार्जुन देसाई गौदर और कर्नाटक राज्य और अन्य केस नंबर: क्रिमिनल पेटिशन नंबर 4761/2022

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