‘मात्र आरोप तय करने से आगे की जांच के आदेश देने पर रोक नहीं, पीड़ित को निष्पक्ष जांच का अधिकार ‘: सुप्रीम कोर्ट

Share:-

एनसीपी एमएलए जितेंद्र आव्हाड के खिलाफ अपहरण और हमले के एक मामले में आगे की जांच का आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “पीड़ित को निष्पक्ष जांच और निष्पक्ष सुनवाई का मौलिक अधिकार है।”
कोर्ट ने कहा कि अगर तथ्यों की आवश्यकता है तो केवल चार्जशीट दाखिल करना और आरोप तय करना आगे की जांच/पुनः जांच/नए सिरे से जांच के आदेश देने में बाधा नहीं हो सकता है। मामला अप्रैल 2020 में महाराष्ट्र के पुलिसकर्मियों द्वारा ठाणे के एक सिविल इंजीनियर अनंत करमुसे के कथित अपहरण और हमले से संबंधित है, जिन्होंने उस समय के कैबिनेट मंत्री आव्हाड के खिलाफ फेसबुक पर एक पोस्ट की थी।
शिकायत के अनुसार, करमुसे को उनके निवास से मंत्री के बंगले तक जबरदस्ती ले जाया गया और फेसबुक पोस्ट करने के कारण मंत्री की उपस्थिति में पुलिस ने बेरहमी से पीटा। हालांकि पीड़ित ने तुरंत शिकायत दर्ज कराई, लेकिन पुलिस ने एफआईआर में मंत्री को आरोपी के तौर पर नामजद नहीं किया। बाद में पीड़ित ने सीबीआई जांच की मांग को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने जांच की निगरानी के लिए विभिन्न आदेश पारित किए। पुलिस द्वारा दायर प्रारंभिक चार्जशीट में मंत्री का नाम नहीं था।
जिसके बाद हाईकोर्ट ने निरंतर निगरानी को देखते हुए उक्त घटना के दो वर्ष बाद मंत्री आव्हाड को अभियुक्त के रूप में जोड़ा। हाईकोर्ट ने बाद में यह देखते हुए रिट याचिका खारिज कर दी कि निचली अदालत ने आरोप तय कर दिए हैं। इससे नाराज होकर पीड़ित ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता महाराष्ट्र राज्य की ओर से पेश हुए। उन्होंने स्वीकार किया कि जांच में कमी को देखते हुए आगे की जांच की आवश्यकता है। पीड़ित की ओर से सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी पेश हुए। याचिका का विरोध करने के लिए सी‌नियर एडवोकेट डॉ एएम सिंघवी और शेखर नफड़े आरोपियों की ओर से पेश हुए।

सुप्रीम कोर्ट का सीबीआई जांच का आदेश देने से इनकार जस्टिस एमआर शाह और ज‌‌स्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने विभिन्न मिसालों का हवाला देते हुए कहा कि सीबीआई जांच की अनुमति केवल “दुर्लभ और असाधारण” परिस्थितियों में दी जा सकती है, हाईकोर्ट के इस विचार से सहमत है कि वर्तमान मामले में सीबीआई जांच की आवश्यकता नहीं है।

संवैधानिक अदालतें आरोप तय होने के बाद भी आगे की जांच का आदेश दे सकती हैं पीठ ने तब विभिन्न मिसालों पर ध्यान दिया, जो संवैधानिक अदालतों को आरोप तय होने के बाद भी आगे की जांच का आदेश दे सकती हैं। वर्तमान मामले पर पीठ ने कहा कि जांच “लापरवाह तरीके” से की गई थी, हालांकि आरोप बहुत गंभीर थे। भौतिक साक्ष्य एकत्र करने में विफलता हुई थी। असली जांच हाईकोर्ट के दखल के बाद ही शुरू हुई।

पीठ ने राज्य के इस रुख पर भी ध्यान दिया कि आगे की जांच की जरूरत है। पीठ ने कहा, “जैसा कि इस न्यायालय ने पूर्वोक्त निर्णयों में देखा और पाया है, पीड़ित को निष्पक्ष जांच और निष्पक्ष सुनवाई का मौलिक अधिकार है। इसलिए, यदि तथ्यों की आवश्यकता है तो मात्र आरोप पत्र दाखिल करना और आरोप तय करना आगे की जांच/पुनः जांच के आदेश में बाधा नहीं हो सकता है।” यह मानते हुए कि हाईकोर्ट ने आगे की जांच की अनुमति न देकर एक गंभीर त्रुटि की है, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि आगे की जांच, अधिमानतः तीन महीने की अवधि के भीतर की जाए।
केस टाइटल: अनंत थानूर करमुसे बनाम महाराष्ट्र राज्य 2023

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *